जानिए उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध लोककला “ऐपण” के बारे में
देहरादून मिरर/ अल्मोड़ा
उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ ही अपनी अनूठी संस्कृति और लोककलाओं के लिए जाना जाता है. इन्हीं में से एक है ऐपण, जो कि प्रदेश को एक विशेष पहचान दिलाती है. शुभ कार्यों और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका खास महत्व है. ऐपण अल्पना का ही प्रतिरूप है, अल्पना को पूरे देश में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में देहरी और दीवार सजाने की कला को ऐपण के नाम से जाना जाता है. ऐपण को”लिख थाप” व “मातृका पटृ” के नाम से भी जाना जाता है.
पहाड़ी क्षेत्रों में किसी त्योहार या शुभ कार्यों के शुभ अवसर पर देहरी, दीवार, मंदिर पर पिसे चावलों के घोल, गेरू, हल्दी, पिठ्या आदि का उपयोग कर हाथों से ऐपण बनाया जाता. इनसे ऐसी आकृतियाँ बनाई जाती हैं जिसे देख मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो. दो दशक पहले तक ऐपण अपने प्राचीन स्वरूप में बनाए जाते थे लेकिन वर्तमान में गेरू व विस्वार की जगह लाल व सफेद आयल पेंट ने ले ली है. भले ही अब ऐपण लाल व सफेद आयल पेंट से बनाए जा रहे हों लेकिन ऐपण कला वही है और इसका महत्व जरा भी कम ना हुआ है. ऐपण कई प्रकार के होते हैं, कुमाऊँनी संस्कृति में मंगल कार्यों शादी, जनेऊ संस्कार, देवपूजन सभी के लिए एक विशिष्ट ऐपण हैं. दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण विशेष प्रकार के इसमें माँ लक्ष्मी के पैर घर के आंगन से शुरू होकर मंदिर तक बनाए जाते हैं तथा लक्ष्मी पूजन के लिए लक्ष्मी चौकी को बनाया जाता है. ऐपण हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है व वर्तमान में ऐपणों ने उत्तराखण्ड को न केवल देश में ब्लकि विदेशों में भी एक अलग पहचान दिलाई है. और वर्तमान में ऐपण सिर्फ लोककला का एक रूप ही नहीं बल्कि उत्तराखण्डी महिलाओं के लिए एक रोजगार का साधन साबित हुआ है.