क्या इस बार भी पुराने मिथक तय करेंगे उत्तराखंड के सत्ता का भविष्य
देहरादून: उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के चुनावी समर में प्रदेश के कई दिग्गज राजनीति के निर्णायक मोड़ पर खड़े नजर आ रहे हैं। इस बार के चुनाव से जुड़े कई रोचक तथ्य भी सामने आ रहे हैं। उत्तराखंड 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे 632 प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला 10 मार्च को होगा, लेकिन इससे पहले उत्तराखंड़ की राजनीति से जुड़े कुछ मिथक(myths)और रोचक तथ्यों से आपको रूबरू कराते है। साथ ही इस बार राज्य की 70 विधानसभा सीटों सबसे खास कुछ सीटों के बारे में आपको बताएंगे।चुनाव आयोग द्वारा लिए गए शपथ पत्रों से नेताओं की उम्र को लेकर खुलासा हुआ। रामनगर से कांग्रेस प्रत्याशी रणजीत रावत ने 2012 में हुए विधानसभाचुनाव में अपनी उम्र 51 बताई थी। इस बार उन्होंने अपनी उम्र 57 बताई है।इसका अर्थ है कि विगत पांच साल में उनकी उम्र शपथ पत्र के मुताबिक एक साल ज्यादा बढ़ गई। जागेश्वर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी गोविंद सिंह कुंजवाल की आयु केवल चार साल ही बढ़ी है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी मदन सिंह बिष्ट की उम्र पांच साल में महज तीन साल ही बढ़ी है। घनसाली से भीमलाल आर्य की उम्र पिछले चुनाव में 30 साल थी और इस चुनाव में उनकी उम्र 33 साल है। वह इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। यशपाल आर्य की उम्र पिछले चुनाव में 60 साल थी,लेकिन पांच साल बाद उनकी उम्र 67 हो गई। कुछ नेता तो अपनी उम्र ही भूल गए। रानीपोखरी से भाजपा प्रत्याशी आदेश चौहान ने पिछली बार अपनी उम्र 33 दिखाई। इस बार वह अपनी उम्र बताना भूल गए। पुरोला विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी मालचंद शपथ पत्र में अपनी उम्र दिखाना भूल गए।
गंगोत्री सीट से जीते प्रत्याशी की पार्टी की बनती है सरकार
उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों से एक गंगोत्री सीट वीआईपी होने के साथ ही मिथक से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि इस सीट से जिस भी पार्टी का प्रत्याशी जीतता है सरकार उसी की बनती है। गंगोत्री विस सीट पर राज्य गठन के पहले से जिस पार्टी का विधायक सूबे में उसकी सरकार बनने का मिथक बना हुआ है। आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरा रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल के गंगोत्री सीट से चुनाव मैदान में उतरने से यह वीआईपी सीट बनकर उभरी है। जिस पर 19 साल बाद त्रिकोणीय मुकाबले के संयोग बने हैं। 2002 और 2012 में दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। जबकि 2007 और 2017 में दोनों ही सीटों से बीजेपी के विधायक बने तो बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाई। 2022 के चुनाव को लेकर इन सीटों पर विशेष नजर है।गठन के बाद हुए चार विधानसभा चुनाव में यह मिथक रहा है कि मुख्यमंत्री चुनाव नहीं जीते। खटीमा में यह मिथक टूटेगा या बरकरार रहेगा, इस पर सबकी निगाहें रहेंगी। खटीमा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने कांग्रेस के भुवन कापड़ी मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी एसएस कलेर चुनाव में तीसरा कोण बना रहे हैं।
उत्तराखंड को 20 साल के सियासी सफर में मिले 11 मुख्यमंत्री
उत्तराखंड के 20 साल के सियासी सफर में प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री मिले हैं। अभी तक सिर्फ कांग्रेस के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे। वहीं, सरकार की बात करें तो 2002 से 2007 तक कांग्रेस सत्ता में रही। फिर 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो बीजेपी की सरकार बनी। 2012 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और दो मुख्यमंत्री दिए। इसके बाद 2017 में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई और पांच साल में तीन मुख्यमंत्री के चेहरे बदले। एक और मिथक यह भी है कि मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़ने वाले सत्ता में दोबारा वापसी नहीं कर पाए हैं। हर विधानसभा चुनाव में जनता ने सत्ता बदली है। ऐसे में देखना होगा कि वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी ये मिथक तोड़ पाते हैं कि नहीं।