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देहरादून: कांग्रेस में अंतर्कलह जारी, पार्टी के विधायक बीजेपी के संपर्क में-सूत्र

देहरादून- उत्तराखण्ड के 22 सालों के इतिहास में यहां सियासत कभी भी स्थिर नहीं दिखी और उत्तराखण्ड में सरकार हो या विपक्ष खटारे बसों की तरह टूटी फूटी सड़कों पर हिचकोले खाती रहती है। बात करें देश में 70 साल तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की तो कांग्रेस की स्थिति डामाडोल है और हालत ये हैं की अब छोटे चुनाव में भी कांग्रस को जीत भी नसीब नहीं हो रही है। आखिर ये कैसे हो रहा है, खुद कांग्रेस को भी समझ में नहीं आ रहा हैं। वहीं बात करें उत्तराखण्ड की तो चुनाव से पहले लग रहा था कि कांग्रेस सत्ता में आएगी, लेकिन अनाप-शनाप बयानबाजी और गुटबाजी के चलते कांग्रेस ने हाथ में आई हुई सत्ता गंवाई है। आइए जानते हैं कि क्या कारण रहे जिनकी वजह से कांग्रेस जीती हुई बाजी हार गई।

•कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर पूर्व सीएम हरीश रावत ने एक ट्विट लिखा था कि ‘यह भी बड़ी अजीब सी बात है कि चुनाव रुपी समुद्र में तैरना है, लेकिन किसी का साथ नहीं मिल रहा है’। उसी दिन से कांग्रेस के कुछ नेताओं की आंखों में हरीश रावत खटक गए और उनको हरवाने की पटकथा लिखनी शुरु हो गई।
• कांग्रेस के एक बड़े नेता ने देवेंद्र यादव को भाजपा का एजेंट बताया था।
• कांग्रेस में टिकट बंटवारे में भी भारी गड़बड़ियां हुई। कांग्रेस ने जिस दिन टिकट बांटे थे, उसी दिन से कांग्रेस की हार की पटकथा लिखनी शुरु हो गई थी। सबसे पहले बात करते हैं लालकुआ की तो जहां पहले संध्या डालाकोटी का टिकट काटा गया जिससे संध्या डालाकोटी के साथ उसके समर्थक नाराज़ हो गए। संध्या डालाकोटी कांग्रेस से टिकट न मिलने पर निर्देलीय ही चुनावी मैदान में उतरीं और इसका खामियाजा हरीश रावत ने चुनाव में को हारकर भुगता। लेकिन आज तक बड़े-बड़े राजनीतिक विशेषयज्ञ भी इस बात को नहीं समझ पाए की राजनीति के इतने अनुभव वाले दिग्गज नेता इतनी बड़ी भूल कैसे कर गए, ये भूल थी या कोई बड़ी साजिश?
• कांग्रेस ने पांच सीटों पर टिकट बदले, जिससे पार्टी की बड़ी फजीहत हुई और कांग्रेस के लोग पार्टी को जितवाने में कम और एक-दूसरे को हरवाने में लग गए, क्यृंकि पार्टी ने खुद ऐसी हालात पैदा किए थे।
• टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी के दिग्गजों पर पैसे के बदले टिकट देने के आरोप भी सियासी गलियारों में खूब तैरते रहे।
• कांग्रेस के अकिल अहमद का मुस्लिम यूनिर्वसिटी वाले बयान ने तो पार्टी के साथ हरीश रावत को भी व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाया है। कांग्रेस ने इस बयान के बदले में बर्खास्तगी की वजह उनको प्रदेश उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी, जिससे आम जनता नाराज़ हो गई और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन चुनाव हारने के बाद कांग्रेस को अकल आई और अकिल अहमद पार्टी से निष्कासित किया गया। लेकिन कांग्रेस ने यह बड़ा कदम भी तब उठाया जब पार्टी का सारा खेल बिगड़ चुका था।

कहते हैं की लोहे को और कोई नहीं, बल्कि उसी का जंक बर्बाद करता है। इसी तरह कांग्रेस के भी हालात हैं, कांग्रेस के कुछ नेता कांग्रेस को बर्बाद करने में जुटे हुए हैं। इसके तमाम उदाहरण सोशल मीडिया पर बयानबाजी की पोस्टें इधर–उधर भटकती मिल जायेंगी। कांग्रेस को इतनी बड़ी हार होने के बावजूद भी अकल नहीं आई और अभी भी पार्टी को मजबूत करने के बजाय कमजोर करने में तुले हुए हैं। नेता अपनी हार का ठिकरा एक दूसरे के सर फोड़ते नजर आ रहे हैं।

उधर, मुख्य विपक्षी पार्टी होने के बावजूद भी कांग्रेस पार्टी को अपना नेता प्रतिपक्ष और अध्यक्ष ढ़ुढने में लंबा समय लग गया। सभी को लगा चलो कांग्रेस ने लंबे मंथन के बाद कुछ अच्छा किया लेकिन इसका भी क्या फायदा हुआ, बिना नेता प्रतिपक्ष का सदन भी चलवाया और जब निर्णय लिया तो वह खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसा साबित हो रहा है। जैसे कांग्रेस ने रानीखेत से चुनाव हारने के वावजूद भी करन माहरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया तो वहीं भाजपा से कुछ महीने पहले कांग्रेस में शामिल हुए यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बनाया और खटीमा से सीएम को चुनाव हरवाने वाले भूवन कापड़ी उप नेता सदन बनाया।

सबसे बड़ी बात यह है कि जहां कांग्रेस जाती समीकरण साधने में कामयाब रही तो वहीं क्षेत्रीय संतुलन को कांग्रेस भूल गई। कांग्रेस ने जहां से ज्यादा सीट जीती पूरा नेतृत्व उसी क्षेत्र को दे दिया, जिससे कांग्रेस के कई दिग्गज खफा हैं। यही वजह है कि पार्टी में अंतर्कलह का दौर शुरू हो गया है और पार्टी के नेताओं द्वारा लगातार खुलकर बयानबाजी की जा रही है। तो वहीं दूसरी और सूत्रों के हवाले से यह बात भी सामने आ रही है कि कांग्रेस के कुछ विधायक BJP के संपर्क में भी हैं। कल बुधवार को पार्टी के गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल के 10 विधायकों की गोपनीय बैठक देहरादून में हो सकती है। क्योंकि आलाकमान के इन फैसलों से पार्टी के यह विधायक नाराज बताए जा रहे हैं हालांकि दूसरी तरफ पार्टी ने नेताओं के भाजा में नेतओं के शामिल होने की बात को सिरे से खारिज किया है। लेकिन जिस तरह से पार्टी के अंदर कुछ ठीक-ठाक नहीं है इससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस में अब कुछ बड़ा जरूर होने वाला है।

वहीं दूसरी तरफ गढ़वाल मंडल के नेताओं में गढ़वाल क्षेत्र की उपेक्षा को लेकर नाराजगी साफ दिख रही है, जिसमें पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह खुलकर आलाकमान को चैलेंज कर रहे हैं तो पार्टी के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी इस्तीफे सौंप दिए हैं। ऐसे में कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना है कि कांग्रेस ने एक वक्त पर प्रीतम सिंह को सब कुछ दिया है और अब पार्टी युवाओं को आगे ला रही है, तो इस बात से किसी को कोई नाराजगी नहीं होनी चाहिए। इस बयान से साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस में असंतोष की भावना कहीं ना कहीं पनप रही है। पार्टी पर गुटबाजी भी लगातार हावी होती जा रही है।

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