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पितृपक्ष : जानें, अन्य लोकों से कितना अलग है पितरों का स्थान

 धर्म कर्म।

हिंदूओं में पितृपक्ष का बहुत महत्व है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितरों को लेकर कई तरह की कहानियां है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में दान करने से पितरों को शांति मिलती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद मास में पूर्णिमा से पितृ शुरू होता है। इस साल श्राद्ध पक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक चलेगा। इन दिनों किसी भी तरह के शुभ कार्य वर्जित रहेंगे।

पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार यमराज भी जीवों को मुक्त कर देते हैं, ताकि अपने रिश्तेदारों से तर्पण ग्रहण कर सकें। मान्यता है कि जीवन में अच्छा काम करने वाले जातकों को स्वर्ग में जगह मिलती है। वहीं बुरा करने वालों को नरक में जगह मिलती है। कहां जाता है कि यह दोनों वह जगह है, जहां हमारे पूर्वज रहते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं पितरों को लेकर क्या कहानियां है और पितर कहां रहते हैं।

पितर कहां रहते हैं?

हिंदू आख्यानों के जानकार देवदत्त पटनायक ने अपनी किताब में लिखा है कि पितरों के लिए एक अलग जगह है। उन्होंने अपनी किताब Myth-Mithya में लिखा है कि नरक में रहने वाला स्वर्ग में जा सकता है। लेकिन एक ऐसा स्थान भी है। जहां आशा नहीं है, उससे पुत कहा जाता है। यह पितर के लिए आरक्षित होता है। पितर पुत लोक में उल्टे लटके रहते हैं। पटनायक के अनुसार पुरुष आत्मा और भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि महिला स्वरूप पदार्थ और शरीर का और बुजुर्ग आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं रस्सी नश्वर शरीर का प्रतिनिधित्व है। कहा जाता है कि अगर उनके सभी वंशज बच्चा पैदा नहीं करें। तब वो हमेशा के लिए प्रलय में फंसे रहेंगे।

पितरों का पुनर्जन्म कब होता है?

किताब में बताया गया है कि पुनर्जन्म तब होता है। जब कोई अपना या वंशज बच्चा पैदा करें। जो बिना संतान के मर जाएं। उनके पास धरती पर कोई नहीं बचता जो उनके लिए पुनर्जन्म कर सके। ऐसे में वे पुत में रहने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसके लिए बेटे और बेटी को संस्कृत में पुत्र और पुत्री कहा जाता है। जिसका अर्थ है पुत से मुक्ति दिलाने वाला। एक शिशु को जन्म देकर जातक अपने पुरखों का कर्ज अदा करता है। वह मृत्युलोक से जीवलोक में आने में सहायता करता है।

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