जानिये ईगास मनाने पर क्या मान्यतायें हैं।
देहरादून मिरर/ देहरादून।
उत्तराखण्ड एक पहाड़ी राज्य होने के साथ ही अपनी अनूठी संस्कृति के लिए भी देशभर में मशहूर है। यहाँ अलग-अलग परम्पराएँ और लोकपर्व मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक खास पर्व है इगास। इगास पर परम्परागत नृत्य और भैलो के साथ पहाड़ी व्यंजनों की खुशबू से पूरा गाँव महकता है। इगास को मनाने पर दो प्रमुख मान्यताएं हैं। पहली मान्यता के अनुसार ये माना जाता है कि गढ़वाल में भगवान राम के आयोध्या वापस लौटने की सूचना ग्यारह दिन बाद मिली थी। जिस कारण दीपावली के बाद ग्यारहवें दिन इगास मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गाँवों में खुशी मनाने के लिए लोग खेतों में आग जलाकर लोकगीतों पर खूब थिरकते और चीड़ की लकड़ी जिसे छिलके कहा जाता है उसे हरी बेल से बांधकर अपने चारों ओर तेजी से घुमाते हुए भैलो खेलते थे।
दूसरी मान्यता गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी से जुड़ी है। माना जाता है कि गढ़वाल की सेना ने वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में दापाघाट, तिब्बत के युद्ध को जीत विजय हासिल की थी। क्योंकि दीपावली के ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने गढ़ वापस पहुचीं थी। इसलिए युद्ध जीतने और सैनिकों के घर सकुशल लौटने की खुशी में तब दीपावली मनाई गई थी।