क्या आप जानते हैं हिमालय क्षेत्र की इस बेशकीमती जड़ी बूटी के बारे में:- कीड़ा जड़ी।
देहरादून मिरर/ देहरादून ।
हिमालय में कई जड़ी बूटियां पाई जाती हैं । इन्हीं में से एक नायाब जड़ी बूटी है जिसे हम कीड़ा जड़ी के नाम से जानते हैं। कीड़ा जड़ी को अंग्रेजी में कैटरपिलर फंगस के नाम से जाना जाता है। इसे हिमालयन वियाग्रा और यारशागुंबा के नाम से भी जाना जाता है । इसे कीड़ा जड़ी क्यों कहा जाता है दरअसल यह एक तरह का जंगली मशरूम है जो हिमालय क्षेत्र में फैब्रिक्स नाम के एक कीड़े के ऊपर उगता है। इसका रंग पीला-भूरा होता है। इसका आधा हिस्सा कीड़ा और आधा हिस्सा जड़ सा नजर आता है इसीलिए इसे कीड़ा जड़ी कहा जाता है। तिब्बत में इसे यारशागुंबा के नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम कार्डसेप्स साइनैप्सिस है।
क्यों इसे नायाब जड़ी-बूटी कहा जाता है?
इसके गुणों के कारण इसे एक नायाब जड़ी-बूटी कहा जाता है। कीड़ा जड़ी का प्रयोग एक प्राकृतिक स्टेरॉयड के रूप में किया जाता है। कैंसर के इलाज में काफी हद तक असरदार होने के कारण ही यह नायाब जड़ी बूटी है। यौन शक्ति बढ़ाने में भी यह काफी लाभदायक है। जिस कारण इसे हिमालय वियाग्रा के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार सांस व गुर्दे की बीमारी को सही करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही इसके इस्तेमाल से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इसके इन्हीं गुणों के कारण इसकी कीमत सोने से भी ज्यादा है। कीड़ा जड़ी हिमालय में समुद्र तल से 3500 से लेकर 5000 मीटर की ऊंचाई पर मिलती है। उत्तराखंड में यह जड़ी-बूटी कुमाऊं में धारचूला व बागेश्वर क्षेत्र में तथा गढ़वाल में चमोली में पाई जाती है। भारत के उत्तराखंड के अलावा यह जड़ी बूटी नेपाल और भूटान के हिमालयी क्षेत्रों पर भी मिलती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस जड़ी बूटी की कीमत करीब 18 लाख रुपए किलो है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग होने के कारण इसकी तस्करी भी होती है।पिछले 15 सालों में इसकी उपलब्धता में लगभग 30% की कमी आई है। जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इसे रेट लिस्ट में डाल दिया है। मई से जुलाई के बीच जब पहाड़ों पर बर्फ पिघलती है,तो सरकार की ओर से अधिकृत 10 से 12 हजार स्थानीय ग्रामीण इसे निकालने के लिए इन क्षेत्रों में जाते हैं।